Monday 16 July 2012

वश में नहीं...


कुछ बताना मेरे वश में है
पर कुछ जानना वश में नहीं
कुछ कहना मेरे वश में है
पर कुछ सुनना वश में नहीं
मगर कुछ खास बात जानने को
क्यों दिल करता है
कुछ खास बात सुनने को
मन क्यों बेचैन होता है
जबकी वो यह जानता है कि
ये सब उसके वश में नहीं...

क्यों इन्सान दुख में
धैर्य चाहता है
क्यों वो सुख में
स्थिरता चाहता है
क्यों हर ग़म के बाद
खुशी का सवेरा चाहता है
हर बारिश के बाद क्यों
आसमान में इन्द्रधनुष
ढूंढता रहता है
जबकि वो यह जानता है कि
यह सब पाना
उसके वश में नहीं...

क्यों सुबह के बाद
फिर से सुबह नहीं आती
क्यों हर रात
चाँदनी से भरी नहीं होती
हर सुनहरी सुबह के बाद
घना अंधेरा ही क्यों आता है
क्यों सुख का शांत साया
हर बार साथ में
घनघोर अंधियारा लाता है
क्यों इन्सान हमेशा
खुश रहने की कोशिश करता है
जबकि वो जानता है कि
यह सब उसके वश में नहीं...

जानती हूँ -
किसी की प्रतीक्षा करना
मेरे वश में है
किसी से अपेक्षा रखना
मेरे वश में है
पर उन ख्वाहिशों को
साकार करना
मेंरे वश में नहीं
जीवन के ग़मों को झेलना
मेरे वश में है
दिल के दर्द को सहना
मेरे वश में है
पर उन्हे यादों से मिटा पाना
मेरे वश में नहीं
उन्हे भूला पाना
मेरे वश में नहीं...